Monday, April 18, 2011

जीवन प्रतिपल चुनौती है। और जो उसे स्वीकार नहीं करता, वह जीते जी ही मर जाता है। बहुत लोग जीते जी ही मर जाते हैं। बर्नार्ड शा कहा करता था कि लोग मरते तो हैं बहुत पहले, दफनाए बहुत बाद में जाते हैं। मरने और दफनाने में कोई चालीस साल का अक्सर फर्क हो जाता है। जिस क्षण से व्यक्ति जीवन की चुनौती का स्वीकार बंद करता है, उसी क्षण से मर जाता है। जीवन है प्रतिपल चुनौती की स्वीकृति।

लेकिन चुनौती की स्वीकृति भी दो तरह की हो सकती है। चुनौती की स्वीकृति भी क्रोधजन्य हो सकती है; और तब प्रतिक्रिया हो जाती है, रिएक्शन हो जाती है। और चुनौती की स्वीकृति भी प्रसन्नता, उत्फुल्लता से मुदितापूर्ण हो सकती है; और तब प्रतिसंवेदन हो जाती है।

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